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राजेंद्र यादव एवं सुरेन्द्र वर्मा के उपन्यास साहित्य का वस्तुपरक तुलनात्मक अध्ययन

Author Affiliations

  • 1शासकीय महाविद्यालय, पानसेमल, जिला बड़वानी (म.प्र.), 451881, भारत

Res. J. Language and Literature Sci., Volume 4, Issue (7), Pages 1-4, November,19 (2017)

Abstract

समकालीन हिंदी कथा साहित्य की पहचान जिन कथाकारों से बननी शुरू हुई, उनमे कथाकार राजेंद्र यादव एवं सुरेन्द्र वर्मा अग्रणी हैं! स्वातंत्र्योतर हिंदी कथा साहित्य की दशा और दिशा को समझने के लिए इनके साहित्य से जुड़ना अनिवार्यता बन गया! उनकी बेबाक टिप्पणियों ने जहाँ कथा साहित्य को धार दी, वहीं उपेक्षितों एवं शोषितों के प्रति यथार्थ से जुड़ी सच्ची संवेदना ने स्वतंत्रता के बाद की जिजीविषा को वाणी दी है! ये ऐसे रचनाकार हैं, जिन्होंने साठोत्तरीय कथा साहित्य को वायवी कल्पना से हटाकर ठोस जमीन दी, जहाँ सामाजिक बदलाव के प्रति ललक और प्रेरणा विद्यमान हैं! इसीलिए कथाकार - द्वय साठोत्तरीय भारत की सही तस्वीर प्रस्तुत करने वाले ऐसे रचनाधर्मी हैं, जिनमें आजादी के बाद आये बदलाव की सही तस्वीर तो है ही, साथ ही राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक परिवर्तनों के बजाय नकारापन के विरुद्ध आक्रोश भी है, ऐसा आक्रोश, जिसमें बिताई कुंठा के स्थान पर संघर्ष चेतना है, संघर्षशीलता एवं क्रांतिकारिता हैं! वे कोरे प्रगतिवादी नहीं, परिवेश से सम्प्रक्त संवेदनशील और जागरूक प्रगतिवादी रचनाकार हैं! वे निरे आशावादी नहीं, वरन परिस्थितियों से जूझने के लिए बुनियादी व्यवस्था के विरुद्ध बगावत मुद्रा के रचनाकार हैं! इसीलिए राजेंद्र यादव एवं सुरेन्द्र वर्मा शहरी मध्यमवर्ग से लेकर ग्राम भित्तिक जीवन के पारखी रचनाकार हैं! सिध्दांत और मनोविज्ञान उनकी रचनाओं में स्वतः स्फूर्त हैं, उनकी अपनी रचनाधर्मिता संवादी नहीं है!

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