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डॅाo मोहन गुप्त ‘अराज-राज’ के रामकथापरक उपन्यास ‘अराज-राज’ में इतिहास एवं कल्पना तत्व

Author Affiliations

  • 1महाकाल वाणिज्यिक केन्द्र, नानाखेड़ा, उज्जैन, म.प्र., भारत

Res. J. Language and Literature Humanities, Volume 3, Issue (8), Pages 7-11, September,19 (2016)

Abstract

भारत राम-कथा भारतीय चिन्तन का वह मेरूदण्ड है जिसमें साहित्य, कला, मनोविज्ञान एवं दर्शन की अवधारणाओं के विभिन्न सूत्र अनुस्यूत हैं। कालक्रम एवं विकासचक्र के परिवर्तन के साथ.साथ सामाजिक, राजनैतिक, मनोवैज्ञानिक, ऐतिहासिक अथवा आध्यात्मिक अवधारणाऐं राम-कथा के प्रतीक पुरूषों के माध्यम से अपने युग-सदंर्भ की व्याख्या करने के साथ ही प्रश्नों का समाधान भी खोजती रही हैं। इसी क्रम में डॅाo मोहन गुप्त द्वारा रचित रामकथापरक उपन्यासों में उस काल की सामाजिक, आर्थिक, व्यापारिक, शैक्षणिक गतिविधियों के वर्णन के लिए कल्पना तत्व का अद्भुत समावेश किया गया है । लेखक के द्वारा कथावस्तु के विस्तार में इस तरह के कल्पना तत्व का समावेश कथावस्तु को रोचक बनाता है। मात्र तथ्यों के आधार पर औपन्यासिक कृति का सृजन उसे इतिहास बना सकता है जबकि साहित्य सृजन में कल्पना का तत्व उस नीरसता को तोड़ता है। यह शोधपत्र डॅाo मोहन गुप्त के उपन्यास ‘अराज-राज’ की कथावस्तु रामकथा पर केन्द्रित कल्पना के उपयोग और ऐतिहासिक तथ्यों का अद्भुत संयोग प्रस्तुत करता है ।

References

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